सोमवार, 25 मई 2015

श्रीमद्भागवत पुराण एवं आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of Relativity)


श्रीमद्भागवत पुराण में सापेक्षता का सिद्धांत (Theory of Relativity) आइंस्टीन से हजारों वर्ष पूर्व ही लिख दिया गया था | आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत (Theory of Relativity) के बारे में हम सभी भली प्रकार से परिचित हैं | आइंस्टीन ने अपने सिद्धांत में दिक् व काल की सापेक्षता प्रतिपादित की थी । उसने कहा, विभिन्न ग्रहों पर समय की अवधारणा भिन्न-भिन्न ग्रहों पर अलग-अलग होती है | काल का सम्बन्ध ग्रहों की गति से रहता है | उदाहरण के लिए यदि दो जुड़वा भाइयों में से एक को पृथ्वी पर ही रखा जाये तथा दूसरे को किसी अन्य ग्रह पर भेज दिया जाये और कुछ वर्षों पश्चात् लाया जाये तो दोनों भाइयों की आयु में अंतर होगा |
आयु का अंतर इस बात पर निर्भर करेगा कि बालक को जिस ग्रह पर भेजा गया | उस ग्रह की सूर्य से दूरी तथा गति,  पृथ्वी की सूर्य से दूरी तथा गति से कितनी अधिक अथवा कम है ।
एक और उदाहरण के अनुसार चलती रेलगाड़ी में रखी घडी उसी रेल में बैठे व्यक्ति के लिए सामान रूप से चलती है क्योंकि दोनों रेल के साथ एक ही गति से गतिमान है, परन्तु वही घडी रेल से बाहर खड़े व्यक्ति के लिए धीमे चल रही होगी तथा कुछ सेकंडों को अंतर होगा । यदि रेल की गति और बढाई जाये तो समय का अंतर बढेगा और यदि रेल को प्रकाश की गति 299792.458 किमी प्रति सेकंड की गति से (जो कि संभव नहीं है) दौड़ाया जाए तो रेल से बाहर खड़े व्यक्ति की घड़ी पूर्णतया रुक जायेगी | इसकी जानकारी के संकेत हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।

श्रीमद्भागवत पुराण में कथा आती है कि रैवतक राजा की पुत्री रेवती बहुत लम्बी थी, अत: उसके अनुकूल वर नहीं मिल रहा था | इस समस्या के समाधान के लिए राजा रैवतक योग बल से अपनी पुत्री को लेकर ब्रह्मलोक पहुँचे | जिस समय राजा अपनी पुत्री को लेकर ब्रहम लोक पहुँचे उस समय वहाँ गंधर्व गान चल रहा था | राजा अपनी पुत्री
 सहित उक्त कार्यक्रम के समापन की प्रतीक्षा की | जब गान पूरा हुआ तो ब्रह्मा ने राजा को देखा और पूछा कैसे आना हुआ? राजा ने कहा मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने पैदा किया है या नहीं?

ब्रह्मा जोर से हँसे और कहा,- जितनी देर तुमने यहां गान सुना, उतने समय में पृथ्वी पर 27 चर्तुयुगी (1 चर्तुयुगी =4 सत्य युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग ) = 1 महायुग ) बीत चुकी हैं और 28 वां द्वापर समाप्त होने वाला है। तुम वहां जाओ और कृष्ण के भाई बलराम से इसका विवाह कर देना। अब पृथ्वी लोक पर तुम्हे तुम्हारे सगे सम्बन्धी, तुम्हारा राजपाट तथा वैसी भौगोलिक स्थितियाँ भी नही मिलेंगी जो तुम छोड़ कर आये हो | साथ ही उन्होंने कहा कि यह अच्छा हुआ कि रेवती को तुम अपने साथ लेकर आये। इस कारण इसकी आयु नहीं बढ़ी। अन्यथा लौटने के पश्चात्  तुम इसे भी जीवित नहीं पाते | अब यदि क्षण भर भी देर की तो द्वापर के पश्चात् कलियुग में पहुचोगे|”


इससे यह भी स्पष्ट है की निश्चय ही ब्रह्मलोक कदाचित हमारी आकाशगंगा से भी कहीं अधिक दूर है | यह कथा पृथ्वी से ब्रहम लोक तक विशिष्ट गति से जाने पर समय के अंतर को बताती है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी कहा कि यदि एक व्यक्ति प्रकाश की गति से कुछ कम गति से चलने वाले यान में बैठकर जाए तो उसके शरीर के अंदर परिवर्तन की प्रक्रिया प्राय: स्तब्ध हो जायेगी | यदि एक दस वर्ष का व्यक्ति ऐसे यान में बैठकर देवयानी आकाशगंगा (Andromedia Galaz) की ओर जाकर वापस आये तो उसकी उमर में केवल 56 वर्ष बढ़ेंगे किन्तु उस अवधि में पृथ्वी पर 40 लाख वर्ष बीत गये होंगे।

काल के मापन की सूक्ष्मतम और महत्तम इकाई के वर्णन को पढ़कर दुनिया का प्रसिद्ध ब्राह्माण्ड विज्ञानी Carl Sagan अपनी पुस्तक Cosmos में लिखता है, -

"विश्व में एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म है, जो इस विश्वास को समर्पित है कि ब्रह्माण्ड के सृजन और विनाश का चक्र सतत चल रहा है। तथा यही एक धर्म है जिसमें काल के सूक्ष्मतम नाप परमाणु से लेकर दीर्घतम माप ब्रह्म दिन और रात की गणना की गई, जो 8 अरब 64 करोड़ वर्ष तक बैठती है तथा जो आश्चर्यजनक रूप से हमारी आधुनिक गणनाओं से मेल खाती है।"


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