रविवार, 12 अप्रैल 2015

प्रकाश की गति : ऋग्वेद

ऋग्वेद में प्रकाश की गति की गणना

माना जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भौतिक विज्ञानी James Clerk Maxwell (13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।
जबकि आधुनिक समय में महर्षि सायण, जो वेदों के महान भाष्यकार थे, ने १४वीं सदी में प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी जिसका आधार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ५ ० वें सूक्त का चौथा श्लोक था ।

तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ऋग्वेद  १. ५ ० .


अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।
(Swift and all beautiful art thou, O Surya (Surya=Sun), maker of the light, Illuming all the radiant realm.


उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी /भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया -
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते॥
- -सायण ऋग्वेद भाष्य १. ५ ० .


अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है| [O light,] bow to you, you who traverse 2,202  yojanas in half a nimesha..
-Sage Sayana 14th AD

-Sage Sayana 14th AD
http://en.wikipedia.org/wiki/Sayana 

योजन एवं निमिष प्राचीन समय में क्रमशः दूरी और समय की इकाई हैं|उपर्युक्त श्लोक से हमें प्रकाश के आधे निमिष में 2202 योजन चलने का पता चलता है अब समय की ईकाई निमिष तथा दूरी की ईकाई योजन को आधुनिक ईकाइयों में परिवर्तित कर सकते है ।

किन्तु उससे पूर्व प्राचीन समय एवं दूरी की इन ईकाईयों के मान जानने होंगे |

निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कलाः |
त्रिंशत्कला मुहूर्तः स्यात् अहोरात्रं तु तावतः || ........मनुस्मृति 1-64

मनुस्मृति 1-64 के अनुसार :
पलक झपकने के समय को 1 निमिष कहा जाता है !
18 निमीष = 1 काष्ठ;
30 काष्ठ = 1 कला;
30 कला = 1 मुहूर्त;
30 मुहूर्त = 1 दिन व् रात (लगभग 24 घंटे) (As per Manusmriti 1/64 18 nimisha equals 1 kashta, 30 kashta equals 1 kala, 30 kala equals 1 muhurta, 30 muhurta equals 1 day+night )
अतः एक दिन 24 घंटे) में निमिष हुए 24 घंटे = 30 x 30 x 30 x 18= 486000  निमिष

24 घंटे में सेकंड हुए = 24x60x60 = 86400 सेकंड
86400 सेकंड =486000 निमिष
अतः 1 सेकंड में निमिष हुए : 1 निमिष = 86400 /486000 = .17778 सेकंड
1/2 निमिष =.08889 सेकंड
अब योजन का मूल्य ज्ञात कर लेते हैं, श्रीमद्भागवत (3.30.24, 5.1.33, 5.20.43) आदि के अनुसार

1 योजन = 8 मील लगभग
2202 योजन = 8  x 2202 = 17616 मील
सूर्य का प्रकाश 1/2 (आधे) निमिष में 2202 योजन चलता है अर्थात
.08889 सेकंड में 17616 मील चलता है ।
.08889 सेकंड में प्रकाश की गति = 17616 मील 1 सेकंड में = 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग 


उपर्युक्त विश्लेषण से सत्यापित होता है कि प्राचीन समय में संस्कृत विद्वानों एवं मनीषियों को प्रकाश की गति का वैध एवं विश्वसनीय ज्ञान था | वेदों के अनुसार प्रकाश की गति 1 सेकंड में 17616 / .08889 = 198177 मील लगभग तथा वर्तमान आधुनिक विज्ञानों के अनुसार प्रकाश गति गणना 186000 मील प्रति सेकंड लगभग मानी जाती है| (http://en.wikipedia.org/wiki/Speed_of_light) 






गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

भारतीयकालमानः / भारतीयपञ्चाङ्गम्



पञ्चाङ्गम् इति भारतीयकालगणनायाः विशिष्टं नाम अस्ति । तिथिःवासरःनक्षत्रम्,योगःकरणम् इति पञ्च अङ्गानि दिननिदेशर्थं भवन्ति । वर्षे ३६५दिनानि भवन्ति । अस्य संवत्सरम् इति नाम । प्रतिसंवत्सरं उत्तरायणं दक्षिणायनम् चेति द्वे अयने भवतः । प्रतिवर्षं ६ऋतवः १२मासाः भवन्ति । प्रतिमासं शुक्लपक्षः कृष्णपक्षः इति भागद्वयम् अस्ति । प्रत्येकस्मिन् पक्षे १५तिथयः भवन्ति । सप्तवासराः सन्ति । आवर्तनेन प्रतिदिनं कश्चित् वासरनाम भवति । एवमेव प्रतिदिनस्य २७नक्षत्रेषु किञ्चित्,२७योगेषु कश्चित्११करणेषु किञ्चित्१५तिथिषु काचित्निर्दिष्टः भवति एव ।

६० संवत्सराणि
 अयने
 ऋतवः
१२ मासाः
 पक्षे
 वासराः
२७ नक्षत्राणि
१२ राशयः
२७ योगाः
११ करणानि



चतुर्युगानि
४ चरणाः (1,728,000 सौरवर्षाणि
सत्ययुगम्
३ चरणाः (1,296,000 सौरवर्षाणि)
त्रेतायुगम्
२ चरणाः (८६४००० सौरवर्षाणि)
द्वापरयुगम्
१ चरणाः (४३२००० सौरवर्षाणि)
कलियुगम्

सत्ययुगम्/कृतयुगम्

चतुर्षु युगेषु सत्ययुगं अथवा कृतयुगं प्रथमं युगं भवति । यद्यपि प्राचीनवैदिकग्रन्थेषु सत्यत्रेतादीनां युगानां स्पष्टप्रसावः नास्ति तथापि स्मृतिषु पुराणेषु च विशेषतः चतुर्युगानां सविस्तारं प्रतिपादनम् अस्ति । पुराणेषु सत्ययुगस्य विषये एवं विवरणं लभते । वैशाखशुक्लस्य अक्षय्यतृतीयायां भानुवासरे अस्य युगस्य आरम्भः अभवत् । अस्य युगस्य परिमाणहः सौरवर्षाणि । अस्मिन् युगे भगवतः मत्स्यः कूर्मः वराहः नरसिहः इति अवताराः अभवन् । अस्मिन् कले स्वर्णमयस्य व्यवहारपत्राणि प्रचुराणि आसन् । मनुष्यः अत्यन्तं दीर्घकायः अतिदीर्घायुष्मान् आसीत् । अस्य प्रधानं तीर्थक्षेत्रं तु कुरुक्षेत्रम् आसीत् । अस्मिन् युगे ध्यानस्य ज्ञानस्य तपसः प्राधान्यम् आसीत् । प्रत्येका प्रजा पुरुषार्थसिद्धिं प्राप्य कृतकृत्या भवति स्म । अतः अस्य कृतयुगम् इति कथ्यते । चतुष्पादः (पूर्णःधर्मः परिपालितः असीत् । मनुना अवलम्बितं शास्त्रं केवलं धर्मशास्त्रम् आसीत् । महाभारते (वनपर्वणिअस्य युगस्य विषये विशेषमतं मिलति यत् कलियुगात् अनन्तरं कल्किद्वारा अस्ययुगस्य पुनः स्थपनं भविष्यति ।
ब्रह्मणः एकः दिवसः नाम १००००भगेषु कृतेषु एकस्य चरणः इति कथ्यते ।

कलियुगम्
कलियुगं पारम्परिकभारतस्य चतुर्थं युगम् अस्ति । आर्यभाटानुसारं महाभारतयुद्धं क्रि.पू.३१३७तमे वर्षे अभवत् । कलियुगस्य आरम्भः कृष्णरचितस्य अस्य युद्धस्य समाप्तेः ३५वर्षाणाम् अनन्तरम् अभवत् ।Encyclopedia of Hinduism अस्यानुबन्धानुगुणं भगवान् श्रीकृष्णः अस्याः पृथिवीतः प्रस्थानात् अनन्तरं क्रि.पू.३१०२वर्षतः एव कलियुगस्यारम्भः सम्भूतः ।

पौराणिपृष्ठभूमिः
धार्मराजः युधिष्ठिरःभीमसेनःअर्जुनःनकुलःसहदेवः च पञ्च पाण्डवाः माहापराक्रमिणे परीक्षिताय राज्यं समर्प्य महाप्रायाणस्य आरम्बम् अकुर्वन् । अपि च तं पुण्यलोकं प्राप्नुवन् । राजा परीक्षितः धर्मानुसारं ब्राह्मणानम् आज्ञानुसारं राज्यं प्रशासितुम् आरब्धवान् । उत्तरनरेशस्य पुत्रीम् इरावतीं परिणीतवान् । अस्य सुखदाम्पत्यस्य फलरूपेण चत्वारः पुत्राः समभवन् । आचार्यं कृपं गुरुं कृत्वा जाह्नव्याः तटे त्रयः अश्वमेधयागान् अकुर्वन् । यज्ञव्याजेन यथेष्टं धनराशिं ब्राह्मणेषु वितीर्णवन्तः । पुनः दिग्विजयार्थं प्रातिष्ठन्त ।




सोमवार, 6 अप्रैल 2015

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक – Father of Computer Programming


पाणिनि (५०० ई पू)  संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। इनका जीवनकाल 520 – 460 ईसा पूर्व माना जाता है ।

एक शताब्दी से भी पहले प्रसिद्द जर्मन भारतिविद मैक्स मूलर (१८२३-१९००) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा – "मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं, जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके । इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है । …. अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800  धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके ।"

The M L B D Newsletter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को First software man without hardware घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था " Sanskrit software for future hardware "जिसमें बताया गया " प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को अनुभव हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके हैं। हालाँकि उस समय इस तथ्य को किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, परआज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं।

NASA के वैज्ञानिक Mr. Rick  Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला की खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत कठिन कार्य था जब तक कि Mr. Rick Briggs. द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी। उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।

महर्षि पाणिनि भगवान शिव के बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र ज्ञात हुए, जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी। पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार

"पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है"
लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी
"पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं"
कोल ब्रुक
"संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि हैयह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है"
सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. ण्डर
"पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"
प्रो. मोनियर विलियम्स
।। जयतु संस्‍कृतम् । जयतु भारतम् ।।


शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

संस्कृतवाक्यानि प्रतीकेषु उपयुक्तानि

सत्यमेव जयते - भारतसर्वकारः
नभःस्पृशं दीप्तम् - भारतीयवायुदलम्
योगक्षेमं वहाम्यहम् - भारतीयजीवविमानिगमः
शं नो वरुणः - भारतीयजलसेना
बहुजनहिताय - आकाशवाणी
न हि ज्ञानेन सदृशम् - मैसूरुविश्वविद्यालयः
ज्ञानं विज्ञानसहितम् - बेङ्गलूरुविश्वविद्यालयः
योऽनूचान: स नो महान् - राष्ट्रियसंस्कृतसंस्थानम्
तन्नो हंसः प्रचोदयात् - रामकृष्णाश्रमः
सत्यं शिवं सुन्दरम् - प्रसारभारती
तत्त्वं पूषन्नपावृणु - केन्द्रियविद्यालयसङ्घटनम्